ग़ज़ल हिन्दी / मराठी

उदय ढोली,कविता पुणतांबेकर 'कुमुद', चिन्मय पराडकर,नीलेश  शेवगावकर, प्रशांत कोठारी,

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उदय ढोली


१. 
क़दम क़दम पे मेरा इम्तिहान लेकर भी।
वो मुत्मइन न हुआ मेरी जान लेकर भी।

अना भी जिसके लिए बेचनी पडे़ मुझको,
करूंगा क्या मैं भला ऐसी शान लेकर भी।

ये ऊंचे ऊंचे महल आपको मुबारक हों,
मैं ख़ुश हूँ सर पे खुला आसमान लेकर भी।

न्याय धर्म और ईमान बेच देते हैं,
वो अपने हाथों में गीता कु़रान लेकर भी।

बहक रहे हैं क़दम फिर भी चल रहा हूँ मैं,
तमाम उम्र की लंबी थकान लेकर भी।

२. 
प्रेम पूजा इबादत है और ध्यान है।
प्रेम गीता है बाइबल है कु़रआन है।
प्रेम कान्हा की मुरली की इक तान है,
प्रेम राधा के अधरों की मुस्कान है,
प्रेम ही प्रेम का सिर्फ़ प्रतिदान है।
ये महावीर ओ गौतम का उपदेश है,
प्रेम नानक और ईसा का संदेश है,
प्रेम हिंदू है और न मुसलमान है।
प्रेम मीरा कबीरा है और सूर है,
प्रेम है राबिया प्रेम मंसूर है,
प्रेम खु़सरो है तुलसी है रसखान है।
वेद की हर ऋचा का यही सार है,
प्रेम ही सारी सृष्टि का आधार है,
प्रेम का दूसरा नाम भगवान है।
३. 
पूजा से मिला है न इबादत से मिला है।
भगवान तो मां बाप की खि़दमत से मिला है।
दौलत से मिला है न ही शोहरत से मिला है।
दिल को सुकून तेरी मुहब्बत से मिला है।
ज़र्रे को आफ़ताब किया ,है तेरा करम,
जो कुछ मिला है तेरी इनायत से मिला है।
दंगा फ़साद खू़न ख़राबा तबाहियां, 
हमको हर इक अज़ाब सियासत से मिला है।
नफ़रत नहीं करते किसी दुश्मन से कभी हम,
उल्फ़त का सबक हमको विरासत से मिला है।

*मुतमइन=तुष्ट, संतुष्ट.

४. 
ख़ुदा ने बख़्शी जो नेमत संभालकर रक्खें।
नदी,दरख़्त ये परबत संभालकर रक्खें।

वो हिन्दू हो कि मुसलमाँ हो सिख या ईसाई,
है सबका फ़र्ज़ ये भारत संभालकर रक्खें।

हर इक ख़ज़ाने से बढ़कर दुआ बुज़ुर्गों की,
बशर्ते आप ये दौलत संभालकर रक्खें।

जिगर में दर्द,कसक दिल में अश्क आँखों में,
कहाँ तक उनकी अ़लामत संभालकर रक्खें।

उदय ये हमपे है  लाज़िम हरेक हाल में हम,
अपने अजदाद की अज़्मत संभालकर रक्खें।

५. 
कीना,हसद ओ बुग्ज़ के गर्द ओ ग़ुबार ने।
तक़सीम कर   दिया  है  हमें  इंतशार  ने।

उससे गिला किया है दिल ए अश्कबार ने।
"बर्बाद कर दिया  तिरे दो  दिन के प्यार ने"।

मैं  ख़ूब  जानता हूँ  न आएगा  तू मगर ,
बेचैन  कर   रखा  है  तेरे  इंतिज़ार   ने ।

अपना समझ के हमने जिसे सब बता दिया,
हर  राज़  फ़ाश कर  दिया उस  राज़दार ने।

आमद से पहले मेरी चमन क्यूँ सजा लिया,
शिकवा  यही  किया है  गुलों  से  बहार ने।

शेर ओ सुख़न हो इल्म की दौलत हो या हुनर
सब  कुछ  अता  किया है  मेंरे  इंकिसार ने।

मुश्किल बहुत था काम मगर इसके बावजूद,
कुछ  शेर  कह  लिए  हैं  उदय  ख़ाकसार  ने।

*कीना,हसद ओ बुग्ज़-कपट,ईर्ष्या-द्वेष,वैरभाव
तक़सीम-वि भाजित,बँटवारा 
इंतशार- बिखराव,अस्तव्यस्तता
गिला -शिकायत
दिल ए अश्कबार- आँसू बहाता दिल
राज़ फ़ाश -रहस्योद्घाटन
राज़दार-राज़ जानने वाले
आमद-आगमन
चमन-उपवन,वाटिका
शिकवा-आपत्ति,गुल-फूल
शेर ओ सुख़न-साहित्य सृजन, शेर लिखना,सुनाना
इल्म की दौलत-किसी प्रकार के ज्ञान की संपदा
हुनर-कला,सलीक़ा
अता किया- प्रदान किया
इंकिसार- विनय
ख़ाकसार-नाचीज़
---------------------------------उदय ढोली


कविता पुणतांबेकर 'कुमुद' 


रंग जीवनाचे
(वृत्त राधा) 

बाण शब्दांचे असे जे सोडले होते 
 झेलताना अर्थ त्याचे बोचले होते 

स्वप्न माझे फार मोठे ना दिसे कोणा 
रंक मी म्हणुनीच त्याला कोंडले होते 

बांधली मी घर दुकाने ज्या मुलासाठी 
आज त्याने घर विदेशी थाटले होते 

जीवनाचे चित्र जे रेखाटले आम्ही 
रंगल्याविण आज तेही फाटले होते 

खूप शिकण्याची धडाडी आजही माझी 
लेक म्हणुनी पंख माझे छाटले होते 

आसवांचे कोण आता लाड करण्याला 
हे समजता अंतरी ते दाटले होते 

पावसाने आसवे ही वाहुनी गेली 
दुःख माझे आज ऐसे झाकले होते 

खोल गेलेल्या शराला काढले कोणी
वेदना सरताच मी आनंदले होते


कळले नाही
(वृत्त अनल ज्वाला)

वीज कडकली शिवार जळले कळले नाही 
कौलारू घर ऋणात फसले कळले नाही 

तुझे बोलणे आषाढाचे थेंब वाटले 
दुःखाचे कढ उतून पडले कळले नाही 

सुंदर दिसला मला गालिचा मोहित झालो 
पाण्यावरती तवंग जमले कळले नाही 

भाग्य असे का रंग बदलते आयुष्याचे 
नेत्याचे पद काल उलटले कळले नाही 

लाही लाही सूर्य तळपला माथ्यावरती 
त्यावर श्रावण मेघ बरसले कळले नाही

प्रश्न
(वृत्त आनंदकंद)

देऊन लाच आता सुटतील प्रश्न सारे 
स्वीकार हे नसे तर छळतील प्रश्न सारे

देताच रोख त्याला  कागद पुढे सरकला
हा आड मार्ग त्याने मिटतील प्रश्न सारे 

अर्ध्यातुनी असे का, सोडून तू निघाली 
गावात लोक आता करतील प्रश्न सारे 

आई विना मुलाचा सर्वास प्रश्न होता 
सांभाळते असे मी हरतील प्रश्न सारे 

विश्वास आज माझा खंबीर होत आहे
जिंकीन मी लढाई सरतील प्रश्न सारे 

--------------- कविता पुणतांबेकर 'कुमुद' 



चिन्मय पराडकर



१. 

मैं चेहरा नहीं  आईना  हूँ  हक़ीकत कहता हूँ
गर बुरा न  मानिए तो एक नसीहत कहता हूँ

ये जो पल भर की  हमदर्दी है उन्हें ग़रीबों से
डंके की चोट पर मैं उसे सियासत कहता  हूँ

इतना वाकिफ हूँ  ज़माने की बेरुखी से  अब
कोई शिकायत  करे  तो  इजाज़त  कहता हूँ

सैलाब है  अश्क़ों का  आँखों के  समन्दर में
लोग सबब  पूछते हैं  मैं  किस्मत  कहता  हूँ 

ख़ुदा जब पूछता है  ख़्वाबों में ख़्वाहिश मेरी
हर उमर में बस  तुम्हारी  सोहबत  कहता हूँ 

ग़ज़लें  और  कोई   कहनी  आती  नहीं  मुझे
मैं इश्क़ का मारा हूँ बस  मोहब्बत  कहता हूँ। 

२. 
तआरुफ़  उसका  मेरा अरसे  से  था
शिकवा पर मुझे बस एक लम्हे से था

जान से ज़्यादा चाहता था मैं जिसको
प्यार  उसको बस उसके  रुतबे से था

दिल तोड़ने पर उसके यक़ीं कैसे करूँ
दिल का हकीम क्योंकि वो पेशे से था

रंजिशों  को हमेशा  ही हवा  दी उसने
शख़्स वो शायद दुश्मन के खेमे से था

उसकी हर बात को मैं सच समझा था
सारा नशा  कमबख्त के लहज़े  से था 

मरासिम  हम दोनों  का बेशक  न  हो
देखता पर वो छुपकर मुझे दावे से था। 

३. 

आज  सोचा  है  वक्त  से  शिकवा  कर  लूँ
अबके रिश्तों  में  उम्मीदों  से  तौबा  कर लूँ

गर  हो  कोई   हमदर्द   मेरा  भी  यहाँ  पर
जी भर  के रो  लूँ  दिल  को हल्का  कर लूँ

सब कुछ  सुलझाने  में इतना उलझ  गया हूँ
थोड़ी फुर्सत  हो तो ख़ुद  को आसाँ  कर लूँ

अरसे  से  आँखों  की  गिरफ्त  में  हैं  आँसू
तू गर  डूबना  चाहे  तो  इन्हें दरिया  कर लूँ

तेरे सब ग़म मेरे हों  बस ख़ुशियाँ  मिले तुझे
काश कि  'उससे' कुछ  ऐसा  सौदा  कर लूँ

जतन सब किए मैनें  फिर भी नाकाम  हुआ
तू  ही  बता  कैसे  तुझे  मैं  अपना  कर  लूँ

ज़रूरत तो  कोशिशों में भी आ जाती नज़र
जब थी ही नहीं तो कैसे  कोई दावा कर लूँ

कोई शख़्स  तुझसा  फिर मिले तो  सोचूँगा
तब तक तन्हाई के  ही साथ गुज़ारा कर लूँ

वक्त आ गया है समेटूँ  जज़्बात अपने और
ख़ुद को किसी किताब  का किस्सा कर लूँ। 

४. 
उम्र  तनहा  गुज़री  साथ  बस  सफर  का  रहा
शख़्स वो खूब था  वफादार रहा जिधर का रहा

कुछ ऐसी उम्मीद जगा कर वो छोड़ गया हमको
मुलाकात दो पल की  इंतज़ार उम्र भर का  रहा

यूँ तो हमारे कत्ल में हुए कई हथियार इस्तेमाल
पहला वार  लेकिन उस कातिल  नज़र का रहा

जिनको छाँव दी थी  उन्हीं के  हाथों  कट  गया
जाने  क्या  कसूर  उस  बेचारे  शजर  का  रहा

उसे ख़ुदा  समझ बैठना  ग़लती  नहीं  थी  मेरी
मुझे  रोता  देखकर  भी  वो  पत्थर  का   रहा

हुनर  मुझमें  भी  कुछ   कम  नहीं  था  उससे
तरक्कियों में फर्क बस  हमारे मुकद्दर  का रहा। 

५. 
उम्र  तनहा  गुज़री  साथ  बस  सफर  का  रहा
शख़्स वो खूब था  वफादार रहा जिधर का रहा

कुछ ऐसी उम्मीद जगा कर वो छोड़ गया हमको
मुलाकात दो पल की  इंतज़ार उम्र भर का  रहा

यूँ तो हमारे कत्ल में हुए कई हथियार इस्तेमाल
पहला वार  लेकिन उस कातिल  नज़र का रहा

जिनको छाँव दी थी  उन्हीं के  हाथों  कट  गया
जाने  क्या  कसूर  उस  बेचारे  शजर  का  रहा

उसे ख़ुदा  समझ बैठना  ग़लती  नहीं  थी  मेरी
मुझे  रोता  देखकर  भी  वो  पत्थर  का   रहा

हुनर  मुझमें  भी  कुछ   कम  नहीं  था  उससे
तरक्कियों में फर्क बस  हमारे मुकद्दर  का रहा। 

--------------------------- चिन्मय पराडकर


नीलेश  शेवगावकर


१. 
देख तेरा जो हाल है प्यारे 
ज़िन्दगी का सवाल है प्यारे. 

लोग मुर्दा पड़े हैं बस्ती में,
बस तुझी में उबाल है प्यारे.

आम कहता है ख़ुद को जो इंसाँ,
उसकी रंगत तो लाल है प्यारे.

उसकी थाली में मुझ से ज़्यादा घी, 
बस यही इक मलाल है प्यारे.  

हम ने अपना लहू भी वार दिया,
सबको लगता गुलाल है प्यारे.   

ख़ाक ही ख़ाक बस उड़ेगी अब, 
ये हवाओं की चाल है प्यारे.  

अब तो उम्मीद भी है नाउम्मीद,  
क्या ही अच्छा ये साल है प्यारे 

कैसे करवाए वो रफ़ू पैबंद,
पैरहन जिसका, ख़ाल है प्यारे.

हो गए रोंगटे खड़े तेरे, 
ये ग़ज़ल का कमाल है प्यारे.

२. 
आप का, ग़म में हमारे कभी शामिल होना,
अपनी क़िस्मत में नहीं था ये भी हासिल होना. 
.
आख़िरी सांस तलक़  साथ चली रुसवाई,
देखना बाक़ी रहा, राह का मंज़िल होना. 
.
इक सफ़र चलता रहा उसके फ़ना होने तक
एक हसरत थी लहर की, कभी साहिल होना. 
.
जश्न में डूबे हुए दिल में ख़लिश थी हरदम, 
रोज़ महसूस किया, याद का... महफ़िल होना. 
.
बोझ नाकामी-ए-हसरत का उठाकर देखो, 
कितना आसान है आसान का मुश्किल होना.
.
“नूर” इल्ज़ाम उठाकर लगे जीना मुश्किल, 
इतना आसाँ भी नहीं ख़ुद का ही क़ातिल होना

३. 
लोग कहते हैं मोजज़ा होगा,
देखना कोई हादसा होगा.
.
ख़ूब ईमानदार बनता है,
नौकरी पर नया नया होगा.    
.
जब कहा, सिर्फ़ सच कहा उसने,
वो कभी आईना रहा होगा.
.
जिसकी सुहबत सुकून देती थी,
कैसे मानें कि बेवफ़ा होगा. 
.
एक मुद्दत के बाद धड़का दिल,
ज़ख्म-ए-दिल आज फिर हरा होगा. 
.
टूटता दिल भी एक नेमत है, 
शायरी का चलो भला होगा.
.
शक्ल पर कुछ नहीं लिखा उसने,
कौन कैसा है, कौन क्या होगा. 
.
इक सितारे सा ख़ूब चमका “नूर”,
टूटकर अब कहीं गिरा होगा.

४. 
रंग हम जहाँ में क्या क्या मिला गए 
हार कर लो खुद को, सब को जिता गए.

सब कहें पुराना किस्सा सुना गए,
गो बता के सबकुछ, सबकुछ छुपा गए.

कुछ कहार मिलकर कमरा सजा गए,
और फिर उसी में तन्हा सुला गए.

ख़ाक सबने डाली हम क्यूँ गिला करें,
हाड माँस मिट्टी, मिट्टी बिछा गए.

बाद के सफ़र में मत पूछ क्या हुआ,
आँख मूँदते ही सारे ख़ुदा गए.

चाक पर फ़रिश्ते, घडने लगे मुझे,
फिर नया ठिकाना मुझ को बता गए.

वो जहां अलग था, है ये जहां अलग
‘नूर’ तुम थे कैसे क्या बन के आ गए.

५. 
आँखों से जब पिघले आँसू,
दामन दामन बिखरे आँसू. 

ग़म हो चाहे ख़ुशी हो कोई,
भर आते हैं पगले आँसू. 

आँखों की चौखट पर आकर. 
अक्सर सूखे मेरे आँसू.  

उनकी याद की नम रातों में,
मुझे जलाते, जलते आँसू.  

वस्ल-ओ-फ़िराक हैं एक सरीखे,
कोई फ़र्क न समझे आँसू.  

जिनको दामन-ए-यार न मिलता, 
वो आँसू ख़ुद, रोते आँसू.

राधा मीरा सूर सभी के,
कान्हा गिरधर जपते आँसू.
---------------------नीलेश  शेवगावकर

(*मोजज़ा चमत्कार या करामात)

प्रशांत कोठारी 

         
१. 

किस ज़माने की बात करते हो 
आजमाने की बात करते हो 

दर्द की हद से हम गुज़र भी चुके
तिलमिलाने की बात करते हो 

रो चुके हाल-ऐ-दिल सर-ऐ-बाज़ार 
तुम जताने की बात करते हो 

इस चमन में युगों से सूखा है 
ग़ुल खिलाने की बात करते हो 

मैं नहीं हूँ किसी से रूठा हुआ 
क्यों मनाने की बात करते हो 

है अँधेरा बहुत सियाह यहाँ 
घर जलाने की बात करते हो 

आ भी जाते हो चुप से ख्वाबों में
 और न आने की बात करते हो 

है उदासी अब तो मेरा सबब 
मुस्कुराने की बात करते हो 

खुद गरेबाँ में झांक कर देखो 
क्यों ज़माने की बात करते हो.

२. 
जो सर मांगो तो बेसर हूँ जो सर मांगो तो हाज़िर हूँ. 
तुझे हर शै में देखूँ और, सर- ए- दुनिया मुहाज़िर हूँ.

मुझे बस काम है तुझसे , ना कोई दीन ओ ईमाँ है,  
जो तू कह दे तो मोमिन हूँ, जो तू कह दे तो काफिर हूँ. 

मैं तुझसे अलहदा हूँ और तेरी हस्ती मे शामिल हूँ . 
जो खुदमें हूँ तो हारा हूँ , जो तुझमे हूँ तो नासिर हूँ

मुझ ही में हैं जहाँ दोनो, मुझ ही में लुत्फ औ दर्दां भी. 
मैं सेहरा हूँ मैं दरिया हूँ , मैं प्यासा हूँ मैं आरिज़ हूँ .

--------------------------------------प्रशांत कोठारी 
(*सर-व्यवस्थित,मुहाज़िर-शरणार्थी,दीन-धर्म,मोमिन-ऐसा मुस्लिम जो मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता,नासिर-अजेय,आरिज़-बारिश वाले बादल)



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